माता की प्रत्येक क्रिया बालक के कल्याण के लिये ही होती है, उसी तरह भगवान की ममता जीवन के प्रति माता से भी अधिक है। प्रतिकूलताएं प्रस्तुत करने में उसकी उपेक्षा या निष्ठुरता नहीं, हितकामना ही छिपी रहती है।
माता मधुर मिष्ठान्न भी खिलाती है और आवश्यकता पड़ने पर कड़वी दवा भी पिलाती है। दुलार से गोदी में भी उठाये फिरती है और जब आवश्यकता समझती है डॉक्टर के पास सुई लगाने भी ले जाती है। माता की प्रत्येक क्रिया बालक के कल्याण के लिये ही होती है, उसी तरह भगवान की ममता जीवन के प्रति माता से भी अधिक है। प्रतिकूलताएं प्रस्तुत करने में उसकी उपेक्षा या निष्ठुरता नहीं, हितकामना ही छिपी रहती है। अपनी कठिनाइयों को हल करने मात्र के लिए, अपनी सुविधाएँ बढ़ाने की लालसा मात्र से जो प्रार्थना पूजा करते हैं वे उपासना के तत्वज्ञान से अभी बहुत पीछे हैं। उन्हें उन भिखारी में गिना जाना चाहिये जो प्रसाद के लालच से मन्दिर में जाया करते हैं। भिखमंगे आनन्द कहाँ पाते हैं जो भक्तिरस में निमग्न एक भावनाशील आस्तिक को प्रभु के सम्मुख अपना हृदय खोलने और मस्तक झुकाने में आता है। भगवान के चरणों पर अपनी अन्तरात्मा की अर्पण करने वाले भावविभोर भक्त और प्रसाद को मिठाई लेने के उद्देश्य में खड़े हुए भिखमंगे में जो अन्तर होता है वही सच्चे और झूठे उपासकों में होता है। एक का उद्देश्य परमार्थ है दूसरे का स्वार्थ। स्वार्थी को कहीं भी सम्मान नहीं मिलता। भगवान की दृष्टि में भी ऐसे लोगों का क्या कुछ मूल्य होगा|
आज का संदेश--सुरपति दास इस्कॉन